कितने लगायें अब पैबन्द ज़िन्दगी में
हो चुके हैं सब रास्ते अब बंद ज़िन्दगी में
रिसते हैं अब तो ज़ख्म लहू से कभी अश्कों से
अपने भी हुआ करते थे हौसले बुलंद ज़िन्दगी में
लम्हों को जाने मुझ से ये कैसी दुश्मनी है
मुझ को भी मिलते ख़ुशी के चंद ज़िन्दगी में
ना होता दर्द ना होता रंज मुझ को भी ए “कशिश”
अगर होता मैं भी संगदिल तेरे मानिंद ज़िन्दगी में