Poem: रात हो चली है
रात हो चली है कोई किताब पढ़ने दो मुझे दिन के ज़ख्मों का कुछ तो हिसाब करने दो मुझे घर के हर कोने से कोई जाला गिरा जाता है अपनी ज़ख़्मों को कुछ बा नक़ाब करने दो मुझे रोशनी में छुपे रहते हैं अंधेरों में निकल आते हैं अब तो खुद से ही सवाल-ओ-जवाब करने … [Read more…]